धर्म के नाम पर रोटी क्यों और कब तक? जावेद मलिक
पिछले कुछ समय से एक बार फिर कुछ नेतागण मुस्लिम वोट बैंक का कार्ड खेलना चाहते है कोई आर एस एस और सिमी को एक जैसा संघठन बता रहा है तो कही पूरे दो साल बाद अजमेर ब्लास्ट मामले में संघ का नाम आता है जाहिर है सब कुछ बिहार विधान सभा चुनाव में मतदाताओ को रिझाने के लिया किया गया था लेकिन इस तरह सांप्रदायिक भावना को भड़काने की कोशिश करने वाले नेतागण ये भूल गए थे की आपसी भाईचारे को कितना नुकसान हो सकता था जिन बुरी यादो को हमारा देश भूलना चाह रहा है उन्हें फिर से हरा करने की कोशिश की गयी थी कांग्रेस की नज़र में सत्ता देश से बड़ी हो गयी थी इतिहास गवाह है की इस सत्ता संग्राम में पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे हमारे यहाँ यह झगडा फिर से जहर न घोल दे आख़िरकार ऐसे मुद्दे चुनाव से पहले ही क्यों उठाते है ? ताकि मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस की तरफ आजाये !
एक नज़र : गरीबी रेखा के निचे रहने वालो में ६० प्रतिशत आबादी मुस्लिम लोगो की है जबकि पूरे देश में मुस्लिम आबादी २० प्रतिशत है इसके कारणों की पड़ताल के लिए कई आयोग बने पर कारणों का पता चलने के बावजूद देश में एक वर्ग ऐसा है जो मुसलमानों को गरीब ही रखना चाहता है कुदरत का नियम है जब तक बराबरी नहीं रहेगी तरक्की मुश्किल है ! लेकिन अफ़सोस दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी भारत में बस्ती है लेकिन मुसलमानों को असुरक्षा का डर दिखा कर गरीब बस्ती में रहने को मजबूर कर दिया गया है ! भारत में मुसलमानों में तालीम की काफी कमी है लेकिन मुसलमानों को तालीम की तरफ न ले जाकर सांप्रदायिक झगड़ो की तरफ धकेला जाता है हमारी सोच को विकासपरक न बना कर बार बार धर्म के नाम पर उत्तेजित करने की कोशिश की जाती है क्या इन सब से हमारे देश की तरक्की पर फर्क नहीं पड़ता? जावेद मलिक
Thursday, December 2, 2010
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